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Published on 16 Jul, 2025
Updated on 16 Jul, 2025
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6 min Read
Written by Vipul Tiwary
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आज के समय में अक्सर यह सुनने-देखने को मिलता है कि फलाने के शादी को कई साल हो गये है लेकिन उनके बच्चे नहीं हो पा रहे हैं। शादी के कई साल बाद भी संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। इसका कारण कुछ भी हो सकता है। कई बार कपल्स, कुछ चिकित्सा कारणों से भी बच्चे को जन्म नहीं दे पाते हैं। ऐसे में आज के इस आधुनिक दौर में मेडिकल साइंस काफी आगे बढ़ चुका है। आईवीएफ से लेकर सरोगेसी जैसी कई अलग-अलग तकनीकों का निर्माण हो चुका है। आईवीएफ इन्हीं तरीकों में से एक है, लेकिन कुछ मामलों में यह प्रक्रिया सफल नहीं हो पाती है। इस स्थिति में दंपती के लिए सरोगेसी एक बेहतर विकल्प शामिल हो सकता है। चलिए देखते हैं, सरोगेसी क्या है, भारत में सरोगेसी के लिए कानू क्या है, इत्यादि।
सरोगेसी तकनीक क्या है? सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है, जहां किसी दूसरी महिला का गर्भाशय(कोख) किराए पर लिया जाता है। यानी जो दंपती किसी कारण से गर्भधारण(कंसीव) नहीं कर पाते हैं, उनका सरोगेसी तकनीक के जरिए किसी अन्य महिला की कोख में उनके बच्चे का जन्म होता है। इस प्रक्रिया में सरोगेसी करवाने वाले दंपती और सरोगेट के मध्य एक कानूनी अनुबंध होता है। इस अनुबंध में बच्चे का जन्म होने के बाद, बच्चे का माता-पिता कानूनी तौर पर सरोगेसी करने वाले दंपती ही होंगे और नवजात पर सिर्फ उनका ही अधिकार होगा। भारत देश में सरोगेसी कानूनी तौर पर वैध है। सरोगेसी से जुड़ा एक प्रश्न जो बहुत लोगों के द्वारा पूछा गया है की, सरोगेसी में स्पर्म कौन देता है? तो यह इच्छुक माता-पिता और उनकी चिकित्सकीय स्थिति पर निर्भर करता है। यदि उसकी स्वास्थ्य स्थिति ठीक है तो वो दे सकते हैं नहीं तो स्पर्म डोनर से स्पर्म लिया जा सकता है।
सरोगेसी मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, पारंपरिक सरोगेसी और गर्भावधि सरोगेसी। इसको निम्नलिखित तरीको से जान सकते हैं:-
पारंपरिक सरोगेसी में पिता या डोनर के शुक्राणु (स्पर्म) को सेरोगेट मां के अंडाणु(ऐग्स) से मिलान किया जाता है। यानी इसमें बच्चे के पिता के शुक्राणु की सहायता से सरोगेट महिला के ऐग्स को फर्टिलाइज किया जाता है और उस भ्रूर्ण को महिला के गर्भ में स्थापित किया जाता है। इस प्रकार प्रेग्नेंट महिला बच्चे की बायोलॉजिकल मदर होती है। पारंपरिक सरोगेसी के कुछ मामलों में पीता के स्पर्म का ना इस्तेमाल करके, डोनर के स्पर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसे केस में पिता का भी होने वाले बच्चे के साथ बायलॉजिकल रिस्ता नहीं होता है।
गर्भावधि सरोगेसी जिसे जेस्टेशनल सरोगेसी भी कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें माता-पिता के अंडाणु और शुक्राणु का इस्तेमाल करके फर्टिलाइज किया जाता है और फिर इसे सरोगेट मां के गर्भ में रख दिया जाता है। इस प्रकार के सरोगेसी में सरोगेट मां का होने वाले बच्चे के साथ कोई बायोलॉजिकल रिस्ता नहीं होता है।
सरोगेसी संतान प्राप्ती के लिए एक तकनीक है। सरोगेसी के फायदे निम्नलिखित हैं:-
सरोगेसी और IVF में अंतर आप निम्नलिखित तरीकों से समझ सकते हैं:-
सरोगेसी | IVF |
---|---|
सरोगेसी में कोई और महिला(सरोगेट) आपके बच्चे को अपने गर्भ में पालती है। | आईवीएफ में आप ही गर्भवती होती है, लेकिन तकनीक सहायता की जरूरत पड़ती है। |
इसमें गर्भाधारण सरोगेट मां(अन्य महिला) करती है। | इसमें गर्भाधारण इच्छुक महिला करती है। |
इसमें बच्चा बायलॉजिकल होता है लेकिन किसी और के गर्भ में पलता है। | इसमें बच्चा बायलॉजिकल होता है और स्वयं इच्छुक महिला के गर्भ में ही पलता है। |
इसमें महिला गर्भाधारण नहीं कर सकती है या गर्भाधारण जोखिम भरा हो सकता है। | इसमें महिला गर्भाधारण कर सकती है लेकिन प्राकृतिक तरीके से गर्भाधारण नहीं होता है। |
सरोगेसी प्रक्रिया में लैब में भ्रूण तैयार कर किसी और महिला(सरोगेट मां) गर्भ में प्रत्यारोपण होता है। | आईवीएफ प्रक्रिया में लैब में भ्रूर्ण तैयार कर उसी महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है। |
भारत में सिर्फ निःस्वार्थ भाव से जेस्टेशनल सरोगेसी की अनुमति है। | यह पूरी तरह से वैध है। |
>> यह भी पढ़ें - आईवीएफ (IVF) इलाज कैसे और कब होता है? जानें कितना खर्च आता है
पहले की तुलना में भारत में सरोगेसी के नियमों में कुछ बदलाव किए गए हैं। भारत में सरोगेसी के नए नियम इस प्रकार है:-
सरोगेसी से बच्चा पैदा होने में लगने वाला समय सरोगेसी के पूरी प्रक्रिया पर निर्भर करता है। इस पूरी प्रक्रिया में IVF, मेडिकल चेकअप, कानूनी अनुमति और प्रेग्नेंसी शामिल है। इन सभी प्रक्रियाओं में लगने वाला समय आमतौर पर 12 से 18 महीने का समय लग सकता है। इसमें सेरोगेट मदर का चुनाव करने और मानसिक और शारीरिक जांच में एक से दो महिने का समय लगता है। इसके बाद कानूनी अनुमती, सहमती पत्र और बीमा इत्यादि में 1 से 2 महिने का समय लगता है। फिर आता है, IVF प्रक्रिया जिसमें भ्रूण बनाना, टेस्टिंग और भ्रूण प्रत्यारोपण में लगने वाला समय एक महिना होता है। IVF प्रक्रिया के लगभग दो सप्ताह में जांच होती है और फिर सामान्य गर्भावस्था के लिए 9 महिने का समय होता है। यदि सरोगेसी की सारी प्रक्रिया समय से और सफलता पूर्वक हो जाए तो इसमें 12 से 18 महीने लगते हैं, नहीं तो समय बढ़ भी सकता है और 20 महीने से ज्यादा भी लग सकते हैं।
सरोगेसी में खर्चे की बात करें तो भारत में सरोगेसी के लिए पैसे नहीं देने होते हैं। भारत में सरोगेसी के नए नियम "सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021" लागू है। इसके तहत भारत में अब केवल निःस्वार्थ भाव से और परोपकारी उद्देश्य से ही सरोगेसी प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है। इस कानून के तहत व्यवसायिक सरोगेसी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसमें सरोगेसी कराने वाले दंपत्ति सरोगेट मदर को केवल मेडिकल खर्च और बीमा कवरेज के लिए ही पैसे दे सकते हैं।
सरोगेसी के नए नियमों के तहत, जो कपल्स जेस्टेशनल सरोगेसी का विकल्प चुनते हैं, उन्हें सरोगेसी के खर्चों का भुगतान करने के अलावा सरोगेट मदर के लिए स्वास्थ्य बीमा लेना भी अनिवार्य है। किसी भी IRDAI-मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य बीमा कंपनियों द्वारा आपको कम से कम तीन साल के लिए कवरेज लेना अनिवार्य है। कवरेज किसी भी प्रकार के गर्भावस्था समस्याओं या प्रसवोत्तर समस्याओं को कवर करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए।
सरोगेसी विनियमन अधिनियम 2021 के अनुसार, सरोगेसी कराने वाले दंपत्ति को बिमाकर्ता के लिए ऐसा कवरेज लेना होता है जिसमें, स्वास्थ्य जटिलताएं हो, सरोगेट मदर की बीमारी और मृत्यू शामिल हो, सरोगेसी के दौरान होने वाले अतिरिक्त मेडिकल खर्च और कुछ विशेष नुकसान शामिल हो। सरोगेट मदर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा कवरेज सरोगेसी के स्वास्थ्य समस्याओं के प्रबंधन में सहायक होता है।
डिस्क्लेमर: उपरोक्त जानकारी केवल संदर्भ उद्देश्यों के लिए है। सही चिकित्सीय सलाह के लिए कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श करें। स्वास्थ्य बीमा लाभ पॉलिसी के नियमों और शर्तों के अधीन हैं। अधिक जानकारी के लिए अपने पॉलिसी दस्तावेज़ पढ़ें।
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